अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की कल्पनाएँ आज भी मान्य होतीं तो मैं कहता कि इलाहाबाद का नगर-देवता जरूर कोई रोमैण्टिक कलाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, जिन्दगी और रहन-सहन में कोई बँधे-बँधाये नियम नहीं, कहीं कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वच्छन्द खुलाव, एक बिखरी हुई-सी अनियमितता।
आपकी दुआ है!" चन्दर ने सिर झुकाकर कहा, और सभी हँस पड़े। इतने में शंकर बाबू डॉक्टर साहब के साथ आये और सब लोग चुप हो गये। दिन भर के व्यवहार से चन्दर ने देखा कि कैलाश भी उतना ही अच्छा हँसमुख और शालीन है जितने शंकर बाबू थे।
"मैं आपको पागल नहीं होने दूँगी। मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊँगी।" "मुझे छोड़कर नहीं जाओगी!" चन्दर फिर हँसा- "जाइए आप! अब आप, श्रीमती बिनती होने वाली हैं। आपका ब्याह होगा। मैं पागल हो रहा हूँ, इससे क्या हुआ? इन सब बातों से दुनिया नहीं रुकती, शहनाइयाँ नहीं बन्द होतीं, बन्दनवार नहीं तोड़े जाते!".
बस करो, अब तुम सीमा लाँघ रहे हो।" चन्दर ने मुट्ठियाँ कसकर जवाब दिया। "क्यों, गुस्सा हो गये, मेरे दोस्त! अहंवादी इतने बड़े हो और अपनी तस्वीर देखकर नाराज होते हो! आओ, तुम्हें आहिस्ते से समझाऊँ, अभागे। तू कहता है तूने स्वार्थ नहीं किया।
जिन्दगी का यन्त्रणा-चक्र एक वृत्त पूरा कर चुका था। सितारे एक क्षितिज से उठकर, आसमान पार कर दूसरे क्षितिज तक पहुँच चुके थे। साल-डेढ़ साल पहले सहसा जिन्दगी की लहरों में उथल-पुथल मच गयी थी और विक्षुब्ध महासागर की तरह भूखी लहरों की बाँहें पसारकर वह किसी को दबोच लेने के लिए हुंकार उठी थी। अपनी भयानक लहरों के शिकंजे में सभी को झकझोरकर, सभी के विश्वासों और भावनाओं को चकनाचूर