Swatantrata Sangram me Dr Ambedkar ka Yogdan P A Parmar Hindi Book Summary
भारत का स्वतंत्रता संग्राम करोड़ों देशभक्तों की शहादत का परिणाम है। उस मुक्ति संग्राम में अनेक नामी-अनामी व आम लोगों ने योगदान दिया।
भारत की आजादी के आंदोलन में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की भूमिका के बारे में अनेक विद्वान विरोधाभासी विचार व्यक्त करते हैं। सन 1950 से ‘इतिहास’ का छात्र होने के नाते इस विषय पर मैंने एक ग्रंथ लिखने का विचार किया। इस महापुरुष के जीवन एवं दर्शन के बारे में पढ़ना-संशोधन शुरू किया। इसके अंतर्गत 27 मार्च, 1994 के दिन गुजरात समाचार अखबार में पत्रकार दिगंत ठाकरे ने एक लेख लिखा।
इसमें ( Swatantrata Sangram me Dr Ambedkar ka Yogdan P A Parmar Hindi Book Summary ) उन्होंने बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का वास्तविक मूल्यांकन किया। बाबासाहेब आंबेडकर की 1927 से 1950 और उसके बाद की ऐतिहासिक गतिविधियों का बारीक अभ्यास किया। प्रचंड पुरुषार्थ और मानसिक परिश्रम लगाया जाए, ऐसा यह दुष्कर कर्म था।
डॉ. आंबेडकर स्वयं एक उच्चकोटि के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के इतिहासकार थे। एक इतिहासकार कैसा होना चाहिए, इसके बारे में उन्होंने कहा है-
‘इतिहासकार निश्चित आवेगमुक्त, स्वार्थ, भय, क्रोध और अनुराग से परे एवं सत्य के लिए वफादार होना चाहिए। जो सत्य इतिहास की जननी है, जो इतिहास महान कार्यों को टिकाने वाला है, उस विस्मृति का शत्रु और भूतकाल का साक्षी है, एवं भविष्य का नियामक है। संक्षिप्त में एक इतिहासकार खुले दिमाग का होना चाहिए, लेकिन रिक्त दिमाग का तो नहीं। ऐसे इतिहासकार को उसके सामने पड़े हुए सभी पुराणों का निरीक्षण करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। फिर चाहे यह पुरावें बनावटी हों।’
Swatantrata Sangram me Dr. Ambedkar ka Yogdan – Buddham Publishers
1919 से 1950 तक और उसके बाद बाबासाहेब की राष्ट्रीय भूमिका के बारे में बहुत अनर्गल बातें फैलाई थीं और यह सिलसिला अब भी चल रहा है। आजादी के 72 ताल बाद यह सिलसिला तोड़ने, बाबासाहेब के बारे में फैली अनर्गल बातें दूर करने एवं सत्य हकीकत उजागर करने का मैं निष्ठापूर्वक प्रयत्न कर रहा हूं।
यह ( Swatantrata Sangram me Dr Ambedkar ka Yogdan P A Parmar Hindi Book Summary ) भ्रम फैलाया गया है कि डॉ. आंबेडकर का इतिहास यानी कि ‘अंग्रेज भक्ति का इतिहास।’ यह सोच हर वक्त गलत रही है। यह ग्रंथ पढ़ने के पाठक सोचेंगे कि डॉ. आंबेडकर का इतिहास अंग्रेज भक्ति का नहीं, बल्कि ‘प्रखर राष्ट्रभक्ति का इतिहास’ है। परम देशभक्त, भारतपुत्र डॉ. आंबेडकर के लिए खुद पाठकों का फैसला ही सर्वोत्तम माना जाएगा।
आजादी के आंदोलन के वक्त में डॉ. आंबेडकर की ‘देशद्रोही’, ‘राष्ट्रविरोधी’, ‘प्रतिगामी’, ‘आजादी के विरोधी’, ‘आजादी के अवरोधक’, ‘ब्रिटिश सरकार का प्यादा’, ‘अंग्रेजों के हाथ’, ‘एन्टी स्वराजीस्ट’ जैसे जितने नाम हाथ लगे, उन सभी गालियों से उनको अपमानित कर दलित प्रतिभा को खण्डित करने की कोशिश की थी। कौन थे ये तत्व ?
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