Abhidharmakosha – Tararam Hindi Book Summary
महाकारुणिक भगवान बुद्ध का धर्म अनुपम पुण्यक्षेत्र है। विश्व इतिहास में उनकी तुलना का कोई सत्त्व न हुआ है और न ही होगा। विश्व इतिहास में सम्यक्सम्बुद्ध ही एक मात्र ऐसे देदीप्यमान व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने लगातार पैंतालीस वर्षों तक अनवरत, दुखी, पीड़ित मानवता के अज्ञान की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कृत संकल्प हो, घूम-घूम कर धम्मचक्र प्रवर्तन किया, फिर भी वे थके नहीं, वे चलते रहे
“चरथ भिक्खवे धारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, लोकानुकंपाय अथाय हिताय, सुखाय देवमनुस्सानं” इस उद्घोष के साथ उनका ‘धम्मचक्र’ निरंतर प्रवर्तन करता रहा, जो ‘आदिकल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसान कल्याणं’ है। जगत् के उद्धारक उत्तमशास्ता महाकारुणिक सम्यक्सम्बुद्ध ने देवताओं सहित इस लोक के अनंत हित और सुख के लिए सर्वोत्तम देशना दी।
अभिधर्मकोश – ताराराम हिंदी पुस्तक सारांश
भगवान की देशना के संग्रह का विशाल भंडार आज भी भवार्णव जगत् में विद्यमान है, जो सदियों तक मानव को प्रज्ञा-प्रतिबोध कराता रहेगा। उनकी देशना का एक-एक अक्षर अमृत की बूंद है, वह पवित्र पालना और प्रतिबोधन प्रज्ञा का निखरा रूप है।
अस्तु, तथागत ( Abhidharmakosha Tararam Hindi Book Summary ) के उपदेशों के विशाल संग्रह को परियति, प्रतिपत्ति (पटिपत्ति) और प्रतिवेध (पटिवेध) भी कहा जाता है। इनमें भगवान द्वारा उपदिष्ट धर्म ‘परियत्ति’ नामक सद्धर्म है। यह ‘परियत्ति’ धर्म बुद्ध शासन की आधारशिला है। इस ‘परियत्ति धर्म’ के होने पर ही प्रतिपति और प्रतिवेध धर्म स्थिर रह सकते हैं।
अभिधर्मकोश – ताराराम हिंदी पुस्तक सारांश
इतिहास साक्षी है कि जब भारत में इस ‘परियत्ति धर्म’ के विशाल संग्रह को मिटा दिया गया, जला दिया गया अथवा प्रच्छन्न कर दिया गया, तो सद्धर्म का अवस्थान भी भारत से शनैः-शनैः लुप्त होने लगा। स्पष्टतः प्रतिपत्ति और प्रतिवेध धर्म परियत्ति धर्म के नहीं होने पर नहीं रह सकते हैं। अस्तु, सद्धर्म की चिरस्थिति की कामना से महाकस्सप आदि महाथेरों ने ‘परियत्ति धर्म’ का संग्रह किया। वस्तुतः ये ‘बुद्ध-वचन’ ही हैं।
तथागत ( Abhidharmakosha Tararam Hindi Book Summary ) सम्यक्सम्बुद्ध के द्वारा स्थान-स्थान पर जो देशनाएं दी गई थीं, उसको उनके अनुयायी भिक्खुओं के द्वारा कंठस्थ कर लिया गया था। स्वयंभू, लोकनाथ, त्रैलोक्यदीप का महापरिनिर्वाण हुए अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि पावा और कुसीनारा के मध्य 500 भिक्खुओं के साथ चारिका करते हुए महाकस्सप ने सुभद्र नामक एक वृद्ध प्रव्रजित को यह कहते हुए सुना, “बस, आयुष्मानों! शोक मत करो, विलाप मत करो, हम उस महाश्रमण (सम्यक्सम्बुद्ध) से अच्छी तरह से मुक्त हो गए हैं। हम उसके
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