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Babasaheb DR Ambedkar Ke Sampark Mein 25 Varsh

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Description

Babasaheb DR Ambedkar Ke Sampark Mein 25 Varsh Hindi Book Summary

जैसा कि पुस्तक  के नाम से विदित हो रहा है, यह मेरे उन संस्मरणों और याददाश्तों की दिल व दिमाग की डायरी है जो मैंने आदरणीय बाबा साहेब डाक्टर भीम राव अम्बेडकर के सम्पर्क में रहकर एक चौथाई सदी के दौरान एकत्रित कर रखे हैं।

मेरा सम्पर्क उनसे 1931 में कायम हुआ और निरन्तर पच्चीस वर्ष 6 दिसम्बर 1956 (मृत्यु) तक बना रहा बल्कि उनके मृत शरीर को बम्बई ले जाने में भी मैं शामिल था।

बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर के सम्पर्क में 25 वर्ष हिन्दी किताब को दो भागों में बांटा गया है। पहले भाग में केवल मेरा बाबा साहेब से कैसे निजी सम्पर्क हुआ और पच्चीस बरसों के दौरान निरन्तर बना रहा।

बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर के सम्पर्क में 25 वर्ष हिन्दी किताब

इन पच्चीस बरसों में ( बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर के सम्पर्क में 25 वर्ष हिन्दी किताब  ) पहले सोलह वर्ष ऐसे हैं जिनमें मेरा बाबा साहेब से साक्षात्कार तो केवल एक बार ही हुआ किन्तु मैं उनकी विचारधारा का 1931 से ही अनुगामी बन चुका था। इस समय में मेरा उनसे यद्यपि साक्षात्कार तो कम हुआ किन्तु वह मुझे भली-भाँति जानते थे कि मैं उनके विचारों से प्रभावित हूँ।

इस समय के दौरान 1934 में मेरी गान्धी जी से मुलाकात हुई और मैंने लाहौर में लाला लाजपतराय की कोठी में जहाँ गान्धी जी हरिजन सेवा संघ सम्बन्धी तूफानी दौरे पर पधारे थे, एक डेपुटेशन लेकर डेढ़ घन्टा भर गान्धी जी को पंजाबी अछूतों के सम्बन्ध में एक विस्तृत ब्यौरा दिया। इस ब्यौरे को मैंने ही तैयार किया था और मैंने ही उनके सामने पढ़ा।

बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर के सम्पर्क में 25 वर्ष हिन्दी किताब

ब्यौरे में  जहाँ पंजाब के अछूतों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक अवस्था पर प्रकाश डाला गया था वहाँ इस बात पर भी बल दिया गया था कि हरिजन सेवा संघ संस्था की बागडोर जब तक डाक्टर अम्बेडकर के हाथ में नहीं सौंपी जाती, इस संस्था से अछूतों की कुछ भी भलाई नहीं हो सकती।

मैंने अपने ब्यौरे में गान्धी जी को अछूत बच्चे की अच्छी नर्स की उपमा दी थी, किन्तु अछूत बच्चे को जन्म देने वाली माता डाक्टर साहेब को ही बतलाया था। गान्धी जी के साथ हरिजन शब्द पर भी काफी संवाद हुआ था और उनसे जब यह पूछा गया कि अछूतों को ही हरिजन की उपाधि क्यों दी गई है, गान्धी जी ने उत्तर दिया कि यह अछूत हरिजन अर्थात् परमात्मा के जन हैं। ब्यौरे में यह सवाल भी पूछा गया कि क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सछूत, शूद्र भी परमात्मा के जन हैं या नहीं?

Babasaheb DR Ambedkar Ke Sampark Mein 25 Varsh Hindi Book

अगर ( बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर के सम्पर्क में 25 वर्ष हिन्दी किताब  ) सब परमात्मा के बालक हैं तो केवल अछूतों को ही हरिजन कहना और सवर्ण हिन्दुओं को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य कहना चातुर्वर्ण व्यवस्था की दीवार को पक्का करना है और अछूतों को नया लेबल लगाकर सदा के लिए ऊँची जाति वालों से पृथक् रख कर उनकी दासता में रखना है।

अगर आप अछूतों को हिन्दू मानते हैं तो केवल अछूतों को ही हरिजन न कह कर प्रत्येक हिन्दू मात्र को हरिजन की उपाधि प्रदान कीजिए ताकि हिन्दू मात्र में समता और एकता कायम हो जाए। गान्धी जी ( बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर के सम्पर्क में 25 वर्ष हिन्दी किताब ) इस प्रश्न पर चुप्पी लगा गए थे।

Additional information

Weight 0.400 kg
Dimensions 14 × 2 × 8 cm

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